डॉ० रानी गुप्ता
प्रेम गलियाँ
आज फिर से प्रेम की उन गलियों में, जाने को जी चाहता है तेरे पास आकर तुझे, गले लगाने को जी चाहता है, तड़पाती है तेरी याद…
आज फिर से प्रेम की उन गलियों में, जाने को जी चाहता है तेरे पास आकर तुझे, गले लगाने को जी चाहता है, तड़पाती है तेरी याद…
मेरी जिन्दगी रिश्तों का ठहरा हुआ जल स्पदंन रहित उदास सी तुम आजाओ बरस जाओ प्रेम बूंदो से तरंगि…
वसन- हीन हो देहालिंगन प्रेम नहीं है ध्यान रखें। देह -देह का परिचय होना कहलाता है भोग सखे।। इस परिचय का जीवन कितना देह स…
वह भी क्या दिन थे जब मेरी कलम रूकती ही ना थी बस तुझे ही लिखती रहती थी मेरे हर लफ्ज में तुम ही तुम तो थे कलम की स्य…